गुण और दोष के विवेचन की क्षमता रखने वाले सज्जन लोग ही मेरे इस ग्रन्थ को पढ़ने के योग्य हैं, क्योंकि सुवर्ण की शुद्धता का ज्ञान अग्नि के सम्पर्क से ही होता है (महाकवि कालिदास के कथन का भाव यह है कि मेरे इस ग्रन्थ में गुण दोष जो भी है विद्वान् लोग उसका परिशीलन करें ) ।
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