ज्ञाने मौनं क्षमा शक्तौ त्यागे श्लाघाविपर्ययः ।
गुणा गुणानुबन्धित्वात्तस्य सप्रसवा इव ।।राजा दिलीप शास्त्र ज्ञानी होते हुए भी मौन थे , शक्तिसम्पन्न होते हुए भी क्षमाशील थे, दान देने पर भी प्रशंसा की कामना नहीं करते थे । इस प्रकार उनके गुण परस्पर इस प्रकार जुड़े हुए थे मानों सहोदर हों ।
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